अघोर तंत्र की बड़ी साधना शव:साधना

नवरात्रों के रूप में पूजी जाने वाली नव दुर्गा के बारे में विशेष जानकारीअघोर तंत्र की बड़ी साधना शव साधना

शव साधना हर तांत्रिक साधक की जिज्ञासा बनी रहती है, शव साधना क्यों की जाती है? कैसे होती है? शव साधना को मोक्ष परक शव साधना कहा जाता है। यह बहुत भयंकर, विकट, दुर्द्धर व अति उत्तम शव साधना है। पूर्ण मनोबल वाला व्यक्ति ही इस साधना की ओर अग्रसर हो सकता हो वरना साधना प्राप्ति या जीवन समाप्त करने के सिवाय दूसरा कोई विकल्प इस साधना में नहीं है। यही वास्तविक वीराचार है जिसे वीर ही सुसिद्ध कर सकता है ।

हालांकि यह साधना इष्ट सिद्धि के बाद ही की जाती है तो कृपा इसे करने की कोशिश ना करें ।इसे सिर्फ गुरु को धारण किये हुए साधक ही गुरु की दीक्षा के साथ ही करें। अन्यथा इससे होने वाले परिणामों के आप स्वयं जिम्मेवार होंगे। वेबसाइट पर निहित जानकारी का उद्देश्य मात्र लोगों को तंत्र विद्या के गूढ़ रहस्य से लोगों को अवगत करवाना है अत आपसे निवेदन है की इसे सिर्फ ज्ञानवर्धक सामग्री के रूप ही देखे।

अघोर तंत्र शव साधना

मांस, शुद्ध कच्ची शराब, सरसों, कालातिल, पानी, चन्दन, कंघा, सिंदूर,कुश आसन, लौंग, कपूर, जावित्री व कथा लगा हुआ एक मोठा पान, तीन कुश,संधवा स्त्री के लम्बे बाल, मनुष्य अस्थि की आठ कील (या नीम की लकड़ी )धान की खील ( लावा ), रेशम की रस्सी, 10 ढेला, 46 अंगुल लम्बा एक खड्ग, चावल का आटा, बिल्व पत्र, मिष्ठान्न, नया बिछावन व एक शुद्ध शव ।श्री स्वर्णाकर्षण भैरव पूजनम्

इन बस्तुओं को पहले संग्रह कर फिर साधना शुरू करें ।

इष्ट मंत्र :

ॐ क्लि कालिकाएँ नमः ।।

उपरोक्त मन्त्र का पहले सवा लाख जाप कर यह दृढ़ निश्चय करे कि या तो यह साधना कर सिद्ध बनूंगा या यह शरीर समाप्त कर दूंगा ।

साधना :-

शमशान में जाकर पहले गुरु का ध्यान करे। तत्पश्चात् यह भावना करे कि जितनी भी आत्माएं और देवता जो श्मशान में वास करते हैं सभी मेरी रक्षा करें। इसके बाद श्मशान के देवता को मानकर एक त्रिकोण वेदी बनाकर वहां मांस व कच्ची शुद्ध शराब का भोग दें।

फिर “हालाहल सहस्त्रार हुँ फट्”मंत्र से अपनी देह बाँधे। फिर दशों दिशाओं में “दुर्गे दुर्गे रक्षिणी स्वाहा” मंत्र से सरसों छिड़के। उसके बाद दशो दिशाओं में “पितृ लोकानपृणाहि जः स्वाहा” मंत्र से काले तिल छिड़के। फिर शुद्ध शव को लाए “ॐ फट्” मंत्र से उसे स्नान कराए । इसके बाद “ॐ हुँ मृतकाय नमः “ मंत्र से उसके चरण छूकर पंचमहाभूत भावना से प्रणाम करे। फिर शव को उलट दे, उलटते समय “ॐ मृतकाय नमः” कहे ।

चन्दन आदि सुगन्ध द्रव्य से उस पर लेप करे । फिर कुछ मदिरा छिड़क कर कुछ स्वयं पी ले। उसके बाद मुर्दे के निकट जाकर उसकी कमर पकड़े। यदि मुर्दे में कोई कम्पन हो तो उसके मुंह में थूक दे ।

तत्पश्चात् उसकी दोनों बाहु की ओर, दोनों कंधे की ओर कमर के दोनों ओर तथा जांघ के दोनों ओर मनुष्य अस्थि ( या नीम की लकड़ी ) की कील गाड़े । फिर सभी खूटों ( कील ) से चारो स्थान पर किसी सधवा महिला के बाल से शव को “इदम् बंध बंध झम झम बांधय तिष्ठ तिष्ठ” इस मन्त्र को बोलते हुए बांध दे। उसके बाद मुर्दे का मुँह धो दें। इसके नीचे कुश आसन पहले से बिछा रहे।

शव के मुंह में लौंग, कपूर, जावित्री व कत्था लगा हुआ मीठा पान डाल दे। इसके बाद चारो ओर “गृह गृह विघ्न निवारणम् कृत्वा सिद्धिम् प्रयच्छ” मंत्र बोलकर धान का खील ( लावा ) छिड़क दे और प्रत्येक दिशा के दिक्पाल को मांस, मदिरा का भोग दे। तत्पश्चात् अष्ट डाकिनियों को आठ जगह मांस-मदिरा, पत्ते में परोस दे। फिर “मणिधारिणी हुं फट् स्वाहा” मत्र से अपना आसन शुद्ध करे। उसके बाद 108 बार “ह्रीं” मंत्र का जाप करे। पूजा के सामान एवं अन्य सामानों को थोड़ा दूर रख दें। फिर तेजी से “फट्” कह कर शव की पीठ पर अपना शुद्ध आसन बिछाकर घोड़े के समान सवार हो

जाय।

शव के पांव के नीचे तीन कुशा डाल दें व उसके बालों को संवार दें। फिर दो मिनट प्राणायाम करें। इसके बाद ‘ॐ क्लि’ कालिके रक्षा मंत्र से दसों दिशा पर ढेता फेंक दे। फिर शव पर आसन बिछाकर बेड़े बेड़े बैठे (चौड़ाई में मुंह घुमाकर पालथी मारकर ) और शव के पाँव रेशम की रस्सी से बांध दे, जिससे वह उठ न सके। शव के दोनों हाथों को थोड़ा सा बाहर छितरा दें फिर उस पर कुश रखे और शव पर बैठे बैठे अपने दोनों तलों से पैर लम्बा कर उसके दोनों हाथों को दबा दे। इसी स्थिति में ‘ह्रीं स्पुर, स्फुर, फुस्फुर, प्रस्फुर, घोरघोरकर तन्नों रूप, चट चट, प्रचट प्रचट, हुल हुल हिलि हिलि टं टं लं लं हं हं स्फस्र्फे किलि स्फुर हं क्षं’ मंत्र का जाप ब्रह्म मुहूर्त (3 बजे तक )

करता रहे। जब जब हं क्षं बोलने का समय आये तब तब आज्ञाचक्र पर ध्यान जरूर ले जाना चाहिए। इसके बीच भयंकर भयंकर दृश्य दिखाई देंगे,शव हिलने लगेगा और आपको डराने की कोशिश करेगा लेकिन आपको उससे डरना नहीं है। वह आपको आसान से उठाने की कोशिश भी करेगा। और भी नाना प्रकार के माया जाल फैलायेगा, भयानक डरावनी आकृतियां दिखलाई देंगी। परन्तु साधक न तो शव से उठे, न कुछ छुवे, न किसी तरह का लोभ करे। अन्त में स्त्री रूप में या ब्राह्मण के रूप में देवता आयेंगे। तब शव पर बैठे बैठे ही उन्हें मांस व मदिरा का भोग दे दें । जब भी देवता आपके समक्ष उपस्थित हो तो उनको यथानुसार प्रणाम करे। उसके फलस्वरूप उनसे वरदान मांग लें।

फिर गुरू को प्रणाम कर शव से उत्तर जाय। शव के बन्ध को खोलकर उसके पीठ व दोनों पावों में अपनी कनिष्ठा अंगुली से ‘ॐ मृतकाय गच्छ’ गच्छ मंत्र लिखकर शव को नदी में डाल दे और स्नान कर घर आ जाय । दूसरे दिन चावल के आटे का हाथी बनाकर उसके गले में सिन्दूर लगाये और 46 अंगुल के खड्ग से उसकी बलि दे। उस दिन पंचगव्य पीये। तीसरे दिन 25 ब्राह्मणों को अच्छा मिष्ठात्र भोजन कराये। छः दिन तक अपनो साधना को बिल्कुल गुप्त रखे। 15 दिन तक एक दम नये, बिना किसी के प्रयोग किये बिछावन पर सोये। कोई भी गीत न सुनें, कोई भी नाच न देखे दिन में न बोले, अन्यथा अनिष्ट हो जायगा। 15 दिन तक शरीर में देवता रहता है। नित्य गाय और ब्राह्मण का दर्शन व स्पर्श करे। स्त्री से 15 दिन बिल्कुल कोई बात ना करें ।

विशेष:-हम किसी भी साधना को सिर्फ ज्ञान उपार्जन के उद्देश्य से ही पोर्टल पर प्रस्तुत करते है। अपनी तरफ से हम अपनी व्यक्तिगत सोच को अलग पाते है। किसी भी प्रकार की साधना के लिए उपयुक्त गुरु को धारण करें तथा उसके परामर्शनुसार ही सिद्धि या साधना को पूर्ण करने का प्रयास करें। साधना से होने वाले किसी भी परिणाम के लिए हम उत्तरदायी नहीं है ।