सभी अघोर पंथियों को अलख आदेश। आज एक भोग के बारे में बताना चाहता हु बहुत से लोग कई दिनों से पूछ रहे थे कि अघोर भोग क्या है?
अघोर रंत भोग अघोर पंथ का प्रथम भोग है जो कोई भी अघोरी दे सकता है। साथ ही अघोर पंथ का कोई भी अनुयायी भी जो अघोर को मानता हो वो भी ये भोग दे सकता है।इस भोग का एक मात्र उद्देश्य स्वयं की सकारात्मक ऊर्जाओं को बढ़ाना ओर नकरात्मक ऊर्जाओं का नाश करने होता है।सकारात्मक ऊर्जा बढ़ने और नकारात्मक ऊर्जा घटने से संबंधित के बहुत से स्तर के काम जिनमे सारीरिक मानसिक आर्थिक पारिवारिक सामाजिक कष्ट कुछ हद तक खत्म हो जाते है ये पूर्ण रूप से एक अस्थायी ओर निश्चित समय के लिए असर रखने वाली क्रिया अथवा क्रिया भोग है। इसका असर लगभग 31 दिन तक रहता है। लेकिन इसके साथ ही सुरु की गई अन्य क्रियाओं का असर अन्य क्रियाओं के अनुसार स्थायी ओर अस्थायी दोनों रह सकता है।
भोग स्थल:- शमशान में जलती हुई प्रज्वलित चिता जिसमे की ज्वाला निकल रही हो। ठंडी या केवल अंगारों वाली चिता नही।
भोग का दिन:- बुधवार, शनिवार, अमावस, अथवा ग्रहण काल(चंद्र अथवा सूर्य)
भोग समय:-गोधूलि के बाद अर्ध रात्रि तक ।
सामग्री:- मास,मदिरा,काले लाल वस्त्र,पान,चावल,नारियल,काली मिर्च,काले तिल,काली ओर सफेद राई, सिंदूर,नींबू,सफेद मिठाई,काली हांडी ओर अन्य भी कई वस्तु।
विधि:- काले और लाल कपड़े पर सभी वस्तुओ को क्रम अनुसार मंत्रोच्चार के साथ रख कर पूर्ण विधि अनुसार उपचारित कर समस्त सामग्री को काली हांडी में रख कर। उसको काले कपड़े से मुह बांध कर जलती चिता की लपटों में डालने तक का क्रम ही इसकी पूर्ण विधि है।
अघोर तंत्र की सबसे शक्तिशाली भोग में से ये एक भोग माना जाता है जो कि अगर सटीकत से किया जावे तो संबंधित के जीवन के हालात बहुत हद तक सुधार जाते है।