गोरख नाथ जी का परिचय
गोरख नाथ को भगवान् शिव का अवतार माना जाता है। गोरख नाथ जी सिद्धयोगी थे , इन्हे मत्स्येन्द्र नाथ का मानस पुत्र भी माना जाता है। गोरख नाथ जी के गुरु जी मछन्दरनाथ जी है जो की नाथ सम्प्रदाय की बहुत बड़ी हस्तियों में आते है। गोरख नाथ जी उनके गुरु जी के प्रिय शिष्य थे जिस कारण गोरख नाथ जी के साथ इनका नाम हमेशा से जोड़कर देखा जाता है। इन्होने नाथ सम्प्रदाय को आगे बढ़ाने में बहुत योगदान दिया है।
इनके जन्म के बारे में ऐसा माना जाता है कि मत्स्येन्द्र नाथ जी एक गाँव में भिक्षा मांगने गए , नगर में जब वो भिक्षा मांग रहे थे तो उन्हें एक स्त्री मिली जिसकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने मत्स्येन्द्र नाथ जी से प्रार्थना की ; उसने एक पुत्र की मांग मत्स्येन्द्र नाथ जी से की। मत्स्येन्द्र नाथ जी ने उन्हें एक पुड़िया दी कि हे माई ये ले पुड़िया इसे खा लेना तुम्हे संतान कि प्राप्ति होगी साथ ही उन्होंने कहा कि इसके बारे में किसी से बातचीत न करे। साथ ही उन्होंने कहा कि वो १२ वर्ष पश्चात फिर से आएंगे।
दूसरी औरतों के बहकावे में आकर उस पुड़िआ को गोबर में फेंक दिया । जब १२ वर्ष पश्चात मत्स्येन्द्र नाथ जी उस गाँव में फिर से पधारे तो वो फिर से उस औरत के घर पहुंचे और उनकी संतान के बारे में पूछा तो उस औरत ने बताया कि उसने तो उसे गोबर में फेंक दिए है। इस पर मत्स्येन्द्र नाथ जी ने पूछा कि तुमने उस पुड़िया को कहा गिराया था तब वो औरत मत्स्येन्द्र नाथ जी को उसी स्थान पर ले गयी जहा पर उसने उस पुड़िआ को फेंका था। तब मत्स्येन्द्र नाथ जी ने उस जगह से खुदाई कि तो वह से गौरख नाथ जी उत्पति हुई।
गोरख नाथ जी को हठयोग का जनक कहा जाता है। गोरख नाथ जी ने शैव सम्प्रदाय का प्रचार किया। आरम्भ में नाथ पंथ के ३० पंथ थे जिसमे से १८ पंथ भगवान शिव के नाम पर चले थे १२ पंथ गौरख नाथ जी के नाम से चले थे। वर्तमान में १८ में से ६ पंथ लुप्त हो चुके है इस प्रकार इस समय भगवान् शिव के १२ पंथ जीवित है उसी प्रकार गौरख नाथ जी के नाम से ६ पंथ वर्तमान में मौजूद है।
ऐसा माना जाता है कि कलयुग में दो महान संत हुए है पहले शुक्रयाचार्य दूसरे गौरख नाथ जी महाराज हुए है। सबसे पहले मत्स्येन्द्र नाथ जी ने शैव समुदाय को आगे बढ़ाया उसके बाद बाबा गौरख नाथ जी ने शव धर्म को आगे बढ़ाया। मत्स्येन्द्र नाथ जी को मीननाथ या मछन्दरनाथ भी कहा जाता है ।
श्री शिवावतार महायोगी गोरक्षनाथ जी की उपासना व मंत्र प्रायोगिक भी है । गौरख नाथ जी ने जिन मंत्रो का निर्माण किया है वे अपने आप में सिद्ध होते है , उन्हें सिद्ध करने कि जरूरत नहीं होती है। ये मंतर जान साधारण कि भाषा में होते है।
होली, दिवाली, ग्रहणकाल, शिवरात्रि आदि में, आसन कोमल, मनोहर और चीकना हो, जगह-तुलछी, वन, गुरुआश्रम, तीर्थ स्थान, ,या अपने घर के किसी सुद्ध साफ कमरे में, पूर्व, उत्तर या पश्चिम की तरफ मुंह करके बैठे, इसमें करने वाले 7 आसनों में सुखासन सबसे इसमें “सुखासन” में बहुत देर तक बैठा जा सकता है ये आसन लगाकर तीन बार प्राणायाम तथा बाह्र कुंभक करके फिर श्री गोरक्षनाथ जी की सुन्दर प्रतिमा सामने लगाकर, तेल का दीपक व एक घी का जलावें, मंत्र में गोपनीय इस विज्ञान की की सबसे बङी प्रतिबध्ता है! अंग न्यास आदि करके, गोरक्षभगवान की पंचोपचार पूजन करके ।
ॐभूर्भु वः स्वः भगवते गोरक्षनाथाय नमः गंधमादि समर्पयामि एसा बोलते हुए गोरक्षनाथ जी के चंदन, सिन्दूर अनामिका अंगुली से चढ़ाकर उपरोक्त सहित, फिर अक्षत चढ़ाये! फिर पुष्प, या पुष्पमाला आदि चढ़ाये, विनियोग, ॠष्यादि, करन्यास आदि करके ध्यान आदि चित्त को एकाग्रह को, समदृष्टि रखते हुए जन कल्याणार्थ ही दिया है फिर ॐशिवगोरक्षॐ का
महामंत्र :-
ॐ ह्री श्रीं क्लीं गों गोरक्षनाथ महासिद्धः, सर्व व्यधि विनाशकः।
आदि-व्याधि विपत्ति च महाभीति विनाशय,
नाम मंत्रीऽस्ति ते सिद्ध सर्व मंगल कारकः,
इष्ट सिद्धि महासिद्धि जयं लक्ष्मी विवर्घय!
त्अच्छाधद्धा हठयोगेन भवन्तु स्र्वशक्तियः!
पराभवन्तु दुष्टाश्च शत्रुवेरिः दुर्जनाः,
आपातकालेषु माम् रक्ष मम् बुद्धि प्रकाशय! स्वोपद्रवतो रक्ष घोर रोगान्विनाथ,
ॐ क्रौं ह्रौं श्रीं गों गोरक्षनाथः सर्व व्याधि विनाशकः!
रोगान्भयान्घोराननाशयाय द्रुतम्
दर्शनं देहि प्रत्यक्षं संरक्ष सर्व संकटात् रणे ,
को समुद्रे च रक्ष संरक्ष में द्रुतम्
अग्नि चौरादितो रक्ष त्वन्नाम मंत्र जायतः गों गोरक्ष नाथाय नमोस्तुते ठः ठः ठः स्वाहा ।
बहुत प्रबल मंत्र जप है इससे’गाय भैस के रोग में, वांछित कार्य की सिद्धि, दुर्जन वश में होते है, जप से आठ प्रकार के भय, लक्ष्मी प्राप्ति के लिये! उपद्रवों की शांति, पुत्र प्राप्ति, स्तंभन (किसी की यात्रा रोक देना )कुकृत्य कर रहे उनसे निजात मिल जायेगी ।