पुत्र , विवाह , विद्या, पद प्राप्ति आदि में जल्दी सफलता दिलवाने वाली अत्यंत साधारण भगवान दत्तात्रेय की साधना
भगवान दत्तात्रेय की उपासना एक ऐसी उपासना है, जिसके द्वारा कलियुग मे शीघ्र सफलता मिलती है। सिद्ध महायोगी के रूप मे सर्वत्र प्रत्यक्ष होकर फल देने वाले ये जागृत देवता है। ये अमर देवता है। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव के मिश्रित तेज का निवास है, अतः सृष्टि, स्थिती और प्रलय के सभी कार्य सिद्ध करने मे इनकी पूर्ण शक्ति विद्यमान है।
आपके संबंध मे यह प्रसिद्ध है कि सह्याचल पर आप रहते है। स्मरण करते ही जहाँ चाहे वहाँ पहुँचते है। माहुरगढ मे शयन, गंगा में स्नान, कुरूक्षेत्र में आचमन, गन्धर्वपत्तन (गाणगापुर) मे ध्यान, धूत पापेश्वर मे भस्म धारण, करहाट मे संध्या , कोल्हापुर मे भिक्षा – याचना, पण्ढ़रपुर में तिलकधारण, पांचालेश्वर मे भोजन, तुंगभद्रा मे जलपान, बदरीनारायण मे कथाश्रवण, रैवतगिरी पर विश्राम तथा पश्चिम सागर में सायं सन्ध्या करते है।
“काथबोध” नामक ग्रंथ दत्तात्रेय – संप्रदाय का आधारभूत ग्रंथ है। इसी के आधार पर चौदहवीं शती में श्री नृसिंह सरस्वती ने दत्तात्रेय – सम्प्रदाय को चलाया। इन्ही के शिष्य श्री गंगाधर सरस्वती ने ‘गुरूचरित्र ‘ ग्रंथ की रचना की। श्री पाद श्री वल्लभ श्रीनृसिंह सरस्वती, श्रीएकनाथ, श्री जनार्दन स्वामी, अघोरी बाबा कीनाराम, अवधूत सदाशिव, बह्मेन्द्र स्वामी, श्री अकलकोट स्वामी, श्रीसौर्यबाबा, श्री वासुदेवानन्द सरस्वती आदि महात्मा दत्तात्रेय संप्रदाय के प्रसिद्ध संत हुए है।
भगवान दत्तात्रेय की साधना से सभी सांसारिक कामनाओं को साधा जा सकता है, कन्या विवाह मे विलंब हो रहा है तो इनकी साधना से निश्चय ही शीघ्र विवाह और उत्तम वर की प्राप्ति होती है । पुत्राभाव दूर होकर पुत्र की प्राप्ति, धनाभाव दूर होकर स्थायी रोजगार की प्राप्ति, कम्पीटीशन एग्जाम क्लीयर कर राजकीय सेवा की प्राप्ति, उच्चाधिकारियो की अनुकूलता, स्त्री / पुरुषों मे वैवाहिक सुख की कमी दूर होकर वैवाहिक सौख्य की प्राप्ति निश्चित रुप से होती है। प्रस्तुत है भगवान दत्तात्रेय की सहज सरल और आनंदित करने वाली साधना विधि :–
साधना सामग्री :-
(1) भगवान दत्तात्रेय की प्रतिमा को प्रतिष्ठापित करने के लिए बिना कील लगी आम की लकडी की चौकी।
(2) भगवान दत्तात्रेय के आसन और उत्तरीय के लिए सफेद वस्त्र।
(3) सफेद पुष्प ।
(4) सफेद चंदन।
(5) अंगार पर गुग्गुल की धूप।
(6) भोग के लिए खीर।
(7) साधना स्थल पर गमले मे गूलर का पौधा ।
(बैठने के लिए सफेद ऊनी आसन ।
विधि :-भू शुद्धि कर( या अपने आसन को दो फुट लंबे दो फुट चौडे, चार इंची पायो वाले आम की लकडी के तख्ते पर बिछा ले) आसन बिछा पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाये, हाथ मे पुष्प लेकर सूर्य, गणेश, देवी, शिव, विष्णु और गुरू का ध्यान करे और नमस्कार कर हाथ मे लिए पुष्प चौकी पर चढा दे।
चौकी पर अपने बायें ओर कर्म पात्र ( अर्घा )मे कुश ( डाब) डालकर तीर्थो का आह्वान करे :-ऊँ गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन संन्निधिम् कुरु ।
अपने और पूजा सामग्री के ऊपर निम्नलिखित मंत्र पढते हुये कुश से जल का छींटा दे :-
अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स वाह्याभ्यन्तरः शुचिः।।
सर्वंपवित्रमेवच ऊँ पुण्डरीकाक्षाय नमः ऊँ पुण्डरीकाक्षाय नमः ऊँ पुण्डरीकाक्षाय नमः।।
संकल्प:– आप जिस भी कामना के लिए यह साधना करना चाह रहे है, उसे हाथ मे जल लेकर भगवान दत्तात्रेय को मनोयोग पूर्वक निवेदन करे।
गणेश-गौरी का पंचोपचार पूजन करे।
कुलदेवी का पंचोपचार पूजन करे।
भगवान दत्तात्रेय के दायें तरफ एक कलश पर स्वास्तिक बनाकर मौली बांध दे। कलश मे जल भरकर वरूण देवता से प्रार्थना करे कि मै भगवान दत्तात्रेय की 18 दिन की साधना शुरु कर रहा हुँ अतः आप यहाँ पधारकर 18 दिन तक कलश मे विराजमान रहे । यह कहकर पाँच आम के पत्तों को कलश पर रखकर एक सफेद वस्त्र मे नारियल को लपेटकर कलश के ऊपर रख दे।
वरुण देव का पंचोपचार पूजन करे।
भगवान दत्तात्रेय का पंचोपचार पूजन ( स्नान, सफेद चंदन का तिलक , सफेद सुगंधित पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य) ऊँ द्राँ दत्तात्रेय गुरूवे नमः मंत्र से करे। भोग का प्रसाद गाय को खिला दे।
पूजनोपरांत निम्नलिखित महर्षि नारद द्वारा प्रकट भगवान दत्तात्रेय स्तोत्र के 18 पाठ करे।
सिद्ध होने का समय :- 18 पाठ 18 दिन करने से यह सिद्ध हो जाता है।
परहेज :- साधना दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करे, भूमिशयन करे। महिलाओं का सम्मान करे।
प्रयोग विधान :- सिद्ध होने के पश्चात 18 पाठ करने से मनोकामना पूर्ति होती है।
साधना का क्रम भंग न हो इसलिए एक पाठ प्रतिदिन अवश्य करे।
विनियोग :- हाथ मे जल लेकर :-
।।ॐ अस्य श्री दत्तात्रेय स्तोत्रस्य
महर्षि श्रीनारद ऋषि: अनुष्टुप छन्द:,श्री दत्त परमात्मा देवता ,मम ( अमुक कामना – सिद्धये) श्रीदत्त प्रभु प्रीत्यर्थम् स्तोत्रपाठे विनियोग: ।।
इतना बोलकर संकल्प का जल छोड दे। फिर सात्विक कार्य की सिद्धि के लिए सात्त्विक ध्यान करे —
ऊँ जटाधरं पाण्डुरंगं शूलहस्तं कृपानिधिम् । सर्वरोगहरं ज्ञानघनं दत्तात्रेयमहं भजे॥
ऊँ जगदुत्पति- कर्त्रै च, स्थिति संहार हेतवे। भवपाश -विमुक्ताय दत्तात्रेय नमो॓ऽस्तुते॥ (1)
जरा -जन्म -विनाशाय , देहशुद्धि कराय च। दिगम्बर दयामूर्ते दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (2)
कर्पूर-कान्ति- देहाय , ब्रह्ममूर्तिधराय च। वेदशास्त्र- परिज्ञाय , दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (3)
ह्रस्व- दीर्घ -कृश-स्थूल- नाम-गोत्र -विवर्जित:।
पंचभूतैकदीप्ता दत्तात्रेय! नमोऽस्तुते॥ (4)
यज्ञ भोक्त्रे च यज्ञाय, यज्ञरूपाय वै तथा।
यज्ञप्रियाय सिद्धाय , दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (5)
आदौ ब्रह्मा ततो विष्णुरन्ते देव: सदाशिव:।
मूर्तित्रय स्वरूपाय , दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (6)
भोगालयाय भोगाय योगयोग्याय धारिणे।
जितेन्द्रिय जितज्ञाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (7)
दिगम्बराय दिव्याय दिव्यरूप धराय च। सदोदित -परब्रह्म दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (
जम्बूद्वीप-महाक्षेत्र- मातापुर- निवासिने। जयमान सतां देव दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (9)
भिक्षाटनं गृहे ग्रामे पात्रं हेममयं करे।
नाना स्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥(10)
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वक्त्रे चाकाश- भूतले।
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (11)
अवधूत सदानन्द परब्रह्म- स्वरूपिणे। विदेह -देहरूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (12)
सत्यरूप सदाचार सत्यधर्म- परायण। सत्याश्रम परोक्षाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (13)
शूलहस्त गदापाणे वनमाला सुकन्धर। यज्ञसूत्रधर ब्रह्मन् दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (14)
क्षराक्षर-स्वरूपाय परात्पर- तराय च। दत्त-मुक्ति परस्तोत्र दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (15)
दत्तविद्याढ्य लक्ष्मीश दत्तस्वात्म स्वरूपिणे।
गुणनिर्गुण रूपाय दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥ (16)
शत्रुनाश करं स्तोत्रं ज्ञान- विज्ञानदायकम् ।सर्वपापं शमं याति दत्तात्रेय नमोऽस्तुते॥(17)
इदं स्तोत्रं महद् दिव्यं दत्तप्रत्यक्ष – कारकम्। दत्तात्रेय प्रसादाच्च नारदेन प्रकीर्तित्तम्।। (18)
(क) साधना संक्षिप्त विधि मे ही गुरूमण्डल की आज्ञा से दी जा रही है।
( ख) यह साधना हजारों साधको द्वारा अनुभूत और सिद्धि देने वाली है।