पूर्ण भगत पूरणमल की कथा

पूर्ण भगत पूरणमल की कथा

पूरणमल भगत को नाथ सम्प्रदाय की महान हस्ती बाबा चौरंगीनाथ जी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा मन जाता है पूरी दुनिया में आज तक सिर्फ एक ही पुराण भगत हुआ है जिस वजह से उसका नाम पूर्ण भगत यानी पूरणमल के नाम से जाना जाता है। भगत जी ने नाथ सम्प्रदाय की हरयाणा की सबसे बड़ी गद्दी अस्थल बोहर बाबा मस्तनाथ जी का डेरा के नाम से मशहूर है।

प्राचीन समय में सियालकोट में राजा शालीवाहन का राज्य किया करते थे। राजा अपनी पत्नी इच्छरादे के साथ जीवन व्यतित कर रहे थे। शालीवाहन राजा धर्मपारायण एवं न्यायकारी थे उनके राज्य की जनता भी उनका बहुत सम्मान करती थी वह भी अपनी प्रजा का पुत्र के समान प्यार करते थे, पर राजा शालीवाहन के कोई संतान नहीं थी इसलिए वे बहुत चिंताग्रस्त रहते थे।

राजा शालीवाहन संतान सुख पाने के लिए वृद्धावस्था में दूसरा विवाह राजकुमारी न्यूनादे(लुनादे) से कर लिया, किंतु वह रानी भी राजा शालीवाहन को संतान सुख नहीं दें पायी। राजा अब पूरी तरह से टूट जुके थे, मंत्री और राजपुरोहित की सलाह से राजा शालीवाहन ने पुत्रेष्टी यज्ञ करवाया तो उनके बड़ी रानी इच्छरादे के गर्भ से एक बालक का जन्म हुआ उसका नाम पूरण रखा गया। राजा शालीवाहन बड़ा खुश हुआ और राजपुरोहित से बालक पुरण के भविष्य के बारे में बताने को कहा, सभी विद्वानों ने बालक की जन्म कुंडली का फलादेश देखकर सभी के चेहरे की हवाइयां उड़ गई! उन्होंने कहा कि हे! राजन यह बालक बारह बरस तक आपके लिए भारी है आप बारह बरसो तक इस का मुंह नहीं देखे तो आपके लिए अच्छा है, यह बालक अद्भुत है और इसकी कीर्ति पूरे भारतवर्ष में फैलेगी।

राजा ने विद्वानों की बात को मानते हुए बालक को जंगल में भेज दिया साथ ही वही उसके लालन-पालन की समूचित व्यवस्था कर दी। समय के साथ साथ बालक पूरण ने अध्ययन, शस्त्र-शास्त्रों में निपुर्णता हासिल कर ली! एकांतवाश में पूरणमल ने भगवान से साक्षात्कार कर लिया। बारह साल बीत जानने के बाद राजकुमार पूरणमल राजा शालीवाहन के दरबार में उपस्थित हुआ।राजकुमार से मिलकर राजा बहुय प्रसन्न हुए और पूरण से कहा जाओ महल मे, तुम्हारी मांताएं तुम्हारी बांट जौह रही है, राजकुमार महल में अपनी मां इच्छरादे से मिला तो वह बहुत खुश हुई, राजकुमार अपनी जमाता(मोसी) न्यूनादे के पास जाकर प्रणाम किया! राणी न्यूनादे राजकुमार पूरण के सौंदर्य को देखकर चकित रह गई और वह कामवासना से वशीभूत होकर राजकुमार से अनैतिक कार्य करवाने का दबाव दिया। राजा शालीवाहन वृद्ध हो गया था और रानी न्यूनादे जवान थी वह कामपिपासा बुझाने के लिए राजकुमार को पाना चाहती थी।

पूरणमल का जीवन परिचय

पूरण इस बात को समझ गया और उसे कहा आप तो मेरी मां के समान है एेसा गलत काम मैं नहीं कर सकता। राणी न्यूनादे इस अपमान का बदला लेने के लिए राजा शालीवाहन को त्रिया चरित्र दिखाते हुए कहा कि आपका पुत्र मेरे साथ गलत काम करना चाहता है और वह कामुक,विलासी है उसने मेरा शीलभंग करने का प्रयास किया है राजा राणी की बातों में आ गया और बिना जांच-पड़ताल किये ही राजकुमार भगत जी को मृत्युदंड दे दिया। जल्लाद राजकुमार पूरण को जंगल में ले गये पर राजकुमार की दिव्य तेज और सुंदरता देख जल्लाद का मन पसीज गया और राजकुमार को मारने की बजाय घायल कर एक कुंअें में फैंक दिया। जल्लाद वापस आकर राजा से झूठ बोल दिया कि हमनें राजकुमार को मार दिया है।

राजकुमार पूरणमल और गुरु गोरखनाथ : संयोगवश उसी समय गुरु गोरखनाथ जी उसी रास्ते गुजरे। रात्रि विश्राम के लिए के लिए गोरखनाथ जी व उनके शिष्य उसी कुंअे के पास अपना डेरा डाल दिया।

गुरु गोरखनाथ ने अपने एक शिष्य से पानी लाने को कहा! गुरु की आज्ञा पाकर वह पानी भरने उसी कुंअे के पास पहुंचा और पानी निकालने का प्रयास करने लगा, लेकिन उसके सारे प्रयास निष्फल हो गये, वह वापस जाकर गुरु गोरखनाथ को पूरी बात बताई, तब गुरु गोरखनाथ जी उस कुंअे पर जाकर योग माया से जाना कि कुअें में कोई युवक पड़ा है। त्रिकालदर्शी गुरु गोरखनाथ ने अपनी योग शक्ति से पूरण को बाहर निकाला! मूर्छित अवस्था से चेतन स्थिति में आते ही पूरणमल ने गुरु गोरखनाथ को प्रणाम किया ओर अपने साथ धटित हुई सम्पूर्ण घटना बताते हुए गुरु गोरखनाथ को अपना शिष्य बनाने का आग्रह किया। हठयोगी गुरु गोरखनाथ ने जान लिया कि यह बालक कोई साधारण मानव नही है और उन्होंने पूरणमल को अपना शिष्य बना लिया, गुरु के तेजमयी स्पर्श से घायल पूरण पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया। इस प्रकार पूरण को अपने जीवन का उद्देश्य मिल गया,।

इस प्रकार गुरु गोरखनाथ और भगत जी देश भर में घूमते-घूमते राणी सुंदरा के राज्य में पहुंच गये। राणी सुंदरा बड़ी क्रूर और अत्याचारी थी उसने अपने राज्य में भिक्षा मांगने वाले साधु-संतों को पकड़ कर मारने में आनन्द आता था और हजारों साधुओं को मार भी दिया था, गुरु गोरखनाथ ने पूरणमल को समझाया कि इस राज्य में भिक्षा ना लाने की हिदायत दी। पर पूरण को यह बात नागवार लगी क्योंकि गुरु और गुरुमंडली के भोजन का जिम्मा तो उसी पर था, अपने गुरु गोरखनाथ के लिए भोजन की व्यवस्था करने के लिए पूरण राणी सुंदरा के महल पर पहुंच कर अलख जगा दी।

महल के दरवाजे पर तैनात कोतवाल ने भी पूरण को आगाह करते हुए कहा,’ अरे!साधु तुम्हे पता है राणी सुंदरा हर जोगी के प्राणों की प्यासी है वह तुम्हे मार देंगी क्यो? अपनी जान गंवा रहा है, जा भाग जा।’ तब पूरण जति ने जबाव देते हुए कहा,’जोगी को मरने-जीने की चाहत नहीं होती, मुझे भिक्षा लेनी है वो भी रानी सुंदरा से।’ कोतवाल ये समाचार राणी सुंदरा को दे दिया। राणी सुंदरा एक हाथ में भिक्षा और दूसरे हाथ में तलवार लेकर पूरण के पास पहुंच गई। पर जैसे ही राणी सुंदरा की नजर भक्त पूरण पर पड़ी तो उनके दिव्य तेज को देखते ही बेहोश हो गई।

जब सुंदरा की चेतना लौटी तो योगी पूरण ने पूछा, “तुम इस प्रकार निर्दोष साधुओं को क्यों? मारती हो यह कृत्य तुम्हे नरक गामी बनाता है। तब सुंदरा हाथ जोड़कर बोली हे!दिव्य पुरुष मुझे बताया गया था कि मेरा विवाह किसी योगी (साधु) से होगा, जो किसी राजपरिवार से होगा, अब मुझे कैसे ज्ञात हो कि कौन सा साधु राजपरिवार से है? इसलिए मैने मेरे राज्य में आने वाले साधुओं का कत्ल करना शुरू किया! अब मुझे विश्वास हो गया है कि आप किसी राजपरिवार से है अत: हे! योगी आप मुझ से विवाह कर लें। तब पूरण ने कहा “राणी हम योगी है ये कार्य गृहस्थ जीवन जीने वालों का है अत: अब आप मुझे भिक्षा दें मेरे गुरु गोरखनाथ व मेरे गुरु भाई भोजन का इंतजार कर रहे हैं। सुंदरा गुरु गोरखनाथ की कीर्ति से वाकिफ थी उसने निवेदन किया कि मुझे गुरु गोरखनाथ के दर्शन करवा दें। इतना कह कर वह महल में गई और उच्च कोटि का भोजन लेकर गुरु गोरखनाथ के समक्ष उपस्थित हुई। सुंदरा ने सभी को भोजन करवाया। गुरु गोरखनाथ सुंदरा की सेवा भाव से अंत्यंत प्रसन्न हुए और सुंदरा से कुछ मांगने के लिए कहा। सुंदरा ने हाथ जोडकर कहा हे! योगीराज मेरा विवाह पूरणमल से करवा दें मेरी यही इच्छा है। गुरुदेव की आज्ञा पाकर पूरण ने सुंदरा से विवाह कर लिया और उसके महल में आ गये! पर जति पूरण को ये बंधन रास नहीं आया और अपने योग बल से अंर्तध्यान हो गये! इस प्रकार पूरण के चले जाने से राणी सुंदरा बहुत आहत हुई और तड़फकर उसके प्राण पखेरू उड़ गये। पूरण पुन: अपने गुरु गोरखनाथ जी के पास आ गये।

गुरु गोरखनाथ की आज्ञा से अपनी जन्मस्थली स्यिालकोट पर आना : गुरु गोरखनाथ ने अपने शिष्य पूरण से कहा अब तुम वापस अपने मां-बाप एवं सौतेली मां(मोसी) के पास जाओं उन्हें माफ कर दों क्योंकि संत को किसी के प्रति द्वेष का भाव नहीं रखना चाहिए! गुरु की आज्ञा पाकर पूरण स्यालकोट पहुंच गये! जिस बाग में पूरण रुके वह हरा-भरा हो गया, यह बात राज्य में आग की तरह फैल गई कि जो बाग पिछले बारह बरसों में सूख गया था वह बाग एक तपस्वी की आने पर हरा भरा हो गया! यह सूचना जब राजा को मिली तो राजा उस तपस्वी के दर्शन कर का आग्रह किया, मंत्री एवं दरबारी उस महातपस्वी के पास गये और महल में चलने का निवेदन किया! पूरणमल उनके साथ राजमहल में आ गये; राजा-रानी की आंखों में आंसू आ गये। तब पूरणमल ने कहा क्या बात है राजन्! तब राजा ने अपनी पूर व्यथा बता दी कि मैं अपनी युवा राणी न्यूनादे की बातों में आकर उसे मृत्युदंड दे दिया वह तुम्हारी ही उम्र का था! राजा की बात सुनकर पूरणमल ने कहा कि मैं ही आपका पुत्र हूं और पूरण ने उनके चरण स्पर्श किये और कहा कि वह मैं ही हूं; यह बात सुनकर राजा,राणी, और प्रजा बहुत प्रसन्न हुये! राणी न्यूनादे अपने किये व्यवहार से माफी मांगी यह देख राजा बहुत क्रोधित हुए और राणी न्यूनादे को मृत्युदंड देने का आदेश दिया, पर पूरणमल ने उसे माफ करने को कहा और बताया कि अगर ये मेरे साथ यह बर्ताव नहीं करती तो मुझे गुरु गोरखनाथ की शरण में जाने का अवसर नहीं मिलता इसलिए इसे माफ कर देना चाहिए; तब राणी न्यूनादे बहुत लज्जित हुई और पूरण के चरणों में गिरते हुए पुत्र-प्राप्ति की याचना करने लगी, पूरण ने उसे आशीर्वाद दिया की तुम्हारे मेरे जैसा ही पुत्र होगा जिसका नाम ‘रिसालु ‘ होगा, और मंत्री रुपेशशाह का पुत्र महतेशाह होगा इस प्रकार मंत्री रुपेशशाह को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया आगे बढकर पूरणमल अपनी मां इच्छरादे के पास पहुंचे पर उनकी मां पुत्र वियोग में रो रोकर आंखों की ज्योति गंवा चुकी थी वह अपनी मां को स्पर्श करते ही आंखों की ज्योति वापस आ गये।

महल में खुशियों की बारिश हो रही थी। जैसे ही मां-बेटे का मिलन हुआ मां इच्छरादे के स्तनों से दूध की धार निकल ने लगी और उसने कहा पुत्र अब मुझे छोड़कर मत जाना तब योगी पूरण ने कहा,हे! माता आपने मुझे जन्म दिया है लेकिन दूसरा जन्म तो मुझे मेरे गुरु गोरखनाथ ने दिया है इसलिए इस पर केवल और केवल गुरु गोरखनाथ का ही हक है। अंत में माता इच्छरादे से पुन: मिलन और मृत्युपंरात अंतिम संस्कार करने का वचन देकर पूरणमल ने वहा से विदा ली और अपने गुरु गोरखनाथ के पास आ गये।

पूरणमल के चमत्कार चौरंगीनाथ जी  की पावन स्मृति में उनके मंदिर में यहां अब तक शुद्ध घी से प्रज्वलित ज्योति जलती चली आ रही है उस महा ज्योति के शुभ दर्शन यहां पर भी किए जा सकते हैं ।सिद्ध श्री चौरंगीनाथ जी अटल ज्योति वाले मंदिर के निर्माण की भी अपनी ही एक निराली कथा है कहते हैं कि सिद्ध श्री चौरंगीनाथ जी यहां तपस्यारत थे उसी समय एक बंजारा अपने वाहनों पर खांड बोरे लादकर ले जाते हुए यहां आया उसने यहां जंगल में विशाल तालाब देखा तो वह विश्राम के लिए ठहर गया उसका एक सेवक सिद्ध श्री चौरंगी नाथ जी के पास उनके धूने पर अग्नि लेने के लिए गया वार्तालाप के प्रसंग में सिद्ध श्री चौरंगीनाथ जी ने उससे पूछा कि बोरों में क्या माल है बंजारा के सेवक ने सोचा कि यदि असली माल का नाम बतला दिया गया कि इसमें खांड है तब संभव है कि यह साधु हमसे खांड मांग बैठे इस स्थिति में बोरे खोलकर खांड देनी पड़ेगी और बोरो को पुनः बांधना होगा इस सब में बहुत झंझट होगा इस सारे झंझट से बचने के लिए उसने झूठ ही यह कह दिया कि इन बोरों में तो नमक है ।

सिद्ध श्री चौरंगी नाथ जी युक्तयोगी थे वह समझ गये कि यह झूठ बोल रहा है उन्होंने असत्य भाषण से क्षुब्ध होकर बंजारा के बोरों में लदी खांड को योग बल से भुत्यंतर में परिणित कर नमक बना दिया। बंजारा अगले दिन जब अपना माल लेकर समीपस्थ नगर बाजार में गया और वहां उसने जब अपना माल संभाला तो उसे यह देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि उसके सभी बोरों में खांड बजाए नमक भरा हुआ है बंजारा ने अपने सेवकों से पता किया कि यह कैसे संभव हुआ तब एक सेवक ने बताया कि कल वह एक योगी के पास आग लेने गया तब योगी ने मुझसे पूछा कि इसमें क्या माल भरा है तब मैंने उससे यह कहा था कि इसमें नमक है प्रतीत होता है कि उन्ही के कोप से हमारे बोरों की खांड नमक में बदल गई।बंजारा उल्टे पांव सिद्ध श्री चौरंगी नाथ जी के पास पहुंचा वहां जाकर वह उनके चरणों में गिर पड़ा और उनसे सेवक द्वारा उनके समक्ष असत्य भाषण के लिए क्षमा याचना करने लगा बंजारा की क्षमा याचना से संतुष्ट होकर सिद्ध श्री चौरंगी नाथ जी ने कहा जाओ उन बोरों में तुम्हें खांड ही मिलेगी और वह बहुत लाभ से बिकेगी बंजारा वहां से लौट कर जब बाजार में अपने बोरों के पास पहुंचा तो उसने देखा कि सभी बोरों में पूर्ववत खांड ही भरी हुई है उसने उस खांड को बेचा और उससे उसे बहुत लाभ हुआ बंजारा बहुत प्रसन्न हुआ और वह अपना माल बेचने के बाद पुन: सिद्ध श्री चौरंगी नाथ जी के पास आया और उसने उन से अनुमति लेकर वहां एक मंदिर का निर्माण कराया उस मंदिर की दीवार है 7:30 फुट चौड़ी तथा उतनी ही मोटी हैं यह प्राचीन मंदिर इस समय तक वर्तमान है और महा सिद्ध श्री चौरंगी नाथ जी की स्मृति में स्थापित पावन अखंड ज्योति भी उसी मंदिर में अब तक निरंतर प्रज्वलित चली आ रही है यह प्रसंग पौराणिक ग्रंथ योगिसम्प्र्दायाविश्कृति में भी यथावत इसी भांति उद्धृत है ।