प्रेत साधना या वीर साधना

प्रेत साधना या वीर साधना कैसे करें?

प्रेत साधना को वीर साधना भी कहा जाता है। यह साधना अत्यंत शक्तिशाली है, इस साधना को किसी जानकर की देखरेख में करना ही उचित होता है अन्यथा गंभीर परिणाम भी हो सकते है। साधक किसी गुरु के सान्निध्य में इस साधना को पूर्ण कर सकते है। यह साधना अतयनत प्रभावशाली है इस साधना को करके हर तरह का सुख प्राप्त किया जा सकता है चाहे वो दैहिक हो या वैदिक हो।

प्रेत साधना या वीर साधना कैसे करें?
अनुचित कार्य नहीं करेगा प्रेत तथा गुरु आज्ञा से ही इस साधना को प्रारंभ करें। तुलसीदास जी ने यही साधना की थी, इसे ” वीरसाधन ” भी कहते है, सरल है।

विधि:-

शौच का बचा हुआ जल मूलनक्षत्र से प्रारंभ करके बबूल वृक्ष में डालें तथा जल डालकर उसी वृक्ष के नीचे बैठकर 108 मंत्र जपें, माला हड्डी अथवा या इन्द्रायण की जङ को काटकर सूत से बनाई हो या ” करमाला ” से भी जपें, इस प्रकार 42 दिन तक करें, फिर 43 वें दिन केवल मंत्र जपें, पानी नहीं डालें, तो प्रेत सन्मुख आकर पानी मांगेगा तब उसे जल पिलायें तीन वचन अवश्य लें कि:-
1.सात मंत्र पढकर याद करुं तब आना होगा ।
2.जो कार्य उचित करने का कहें वो करना होगा और
3.जब भी कहें छोङकर जाना होगा।
ये वचन लेके फिर सात बार मंत्र पढते ही प्रेत हाजिर होगा, परन्तु अनैतिक कार्य नहीं करेगा और हर शनिवार को अपनी मध्यमा अंगुली का एक बूंद रक्त भी देना होगा अतः सोच-समझकर ही इस साधना में हाथ डालें ।।
जप मंत्र :-

ॐ श्रीं वं वं भुं भूतेश्वरी मम वश्यं कुरु कुरु स्वाहा।

हम किसी भी साधना को सिर्फ ज्ञान उपार्जन के उद्देश्य से ही पोर्टल पर प्रस्तुत करते है। अपनी तरफ से हम अपनी व्यक्तिगत सोच को अलग पाते है। किसी भी प्रकार की साधना के लिए उपयुक्त गुरु को धारण करें तथा उसके परामर्शनुसार ही सिद्धि या साधना को पूर्ण करने का प्रयास करें। साधना से होने वाले किसी भी परिणाम के लिए हम उत्तरदायी नहीं है ।

।। शिवशक्ति सर्व भक्तो की मनोकामना परिपूर्ण करें ।।