भगवान जगन्नाथ: जगन्नाथपुरी के आलोक में भगवान का आवास

भगवान जगन्नाथ: जगन्नाथपुरी के आलोक में भगवान का आवास

भारतीय संस्कृति में कई अलग-अलग देवी-देवताओं के लाखों मंदिर हैं, हर एक का अपना महत्व है। भारतीय धार्मिकता और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है क्योंकि यह हमारे धार्मिक मूल्यों को बताता है और हमें आत्मविकास की ओर प्रेरित करता है। भगवान जगन्नाथ का मंदिर ओडिशा, भारत में जगन्नाथपुरी में है, जो इस धार्मिक धरोहर का एक हिस्सा है। यहाँ हम भगवान जगन्नाथ और जगन्नाथपुरी मंदिर का महत्व जानेंगे और लाखों लोगों को वहाँ आने की प्रेरणा मिलेगी।

भगवान जगन्नाथ का चित्र

भगवान जगन्नाथ का रूप अलग है। वे आँखों के बिना औड़ी आकृति की मूर्तियों में दिखाए जाते हैं। इससे पता चलता है कि भगवान जगन्नाथ को देखने वाले भक्त और सभी मनुष्य उनके सामने एक हैं। भगवान जगन्नाथ की मूर्तियों में चेहरे का कोई आकार नहीं होता, जो साबित करता है कि वे सभी भक्तों के प्रति समरस और अनन्य हैं।

भगवान जगन्नाथ का मंदिर

यह मंदिर जगन्नाथपुरी का है, जिसका नाम आगहन्तुकी है, जिसका अर्थ है “जगदीश्वर का घर”। यह मंदिर 12वीं शताब्दी में राजा चोड़गंग द्वारा बनाया गया था और हिन्दू धर्म के तीन बड़े मंदिरों में से एक है; दूसरे दो कोणार्क और पुरी हैं।

यात्रा पर रथ

भगवान की गर्माहट में आते हुए

रथयात्रा, जो हर साल जून से जुलाई में जगन्नाथपुरी मंदिर में मनाई जाती है, सबसे महत्वपूर्ण उत्सव है। इस उत्सव के दौरान, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी बहन सुबद्रा की मूर्तियां विशेष रथों पर बैठाई जाती हैं, और वे नगर की सड़कों पर निकलकर भक्तों को दर्शन देते हैं। भगवान के भक्तों के लिए यह त्योहार बहुत महत्वपूर्ण है, और लाखों लोग इस धार्मिक उत्सव का आनंद लेते हैं।

 

रथयात्रा का इतिहास और उसकी भूमिका

रथयात्रा का इतिहास बहुत प्राचीन है और पुराणों में इसका जिक्र है। यह जगन्नाथ का एक महत्वपूर्ण त्योहार है और भगवान के अनुयायियों के लिए बहुत मान्यता और उदाहरण है। 18 दिनों की तैयारी के बाद यह त्योहार मनाया जाता है, जिसमें लोग तीन रथों पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुबद्रा की मूर्तिओं को चढ़ाते हैं। यह रथयात्रा के रथ खास रूप से पूर्व से ही बनाए जाते हैं, जिसमें विभिन्न धार्मिक प्रक्रियाएँ और आदर्श शामिल हैं।

जगन्नाथपुरी की भूमिका

भक्तों के लिए जगन्नाथपुरी ओडिशा का एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। यह स्थान धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों का प्रतीक है और भक्तों को भगवान जगन्नाथ को देखने के लिए आकर्षित करता है। भक्तों को धार्मिक उत्सव का आनंद लेने के लिए जगन्नाथपुरी मंदिर में कई प्रकार की पूजाएं और आराधनाएं भी की जाती हैं।

क्यों पड़ते है श्री जगन्नाथ भगवान प्रत्येक वर्ष बीमार?

ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा से भगवान आज भी रोगी हो जाते हैं। इस दिन से अगले 15 दिनों तक जगन्नाथ भगवान बीमार रहते हैं। 15 दिन के लिए मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं और उनकी रसोई बंद कर दी जाती है। भगवान् जगन्नाथ के बीमाऱ होने से जुडी एक प्राचीन कथा इस प्रकार हैं। उड़ीसा प्रान्त में पूरी में एक भक्त रहते थे, श्री माधव दास जी अकेले रहते थे, कोई संसार से इनका लेना देना नही। अकेले बैठे बैठे भजन किया करते थे, नित्य प्रति श्री  का दर्शन करते थे और उन्ही को अपना सखा मानते थे, प्रभु के साथ खेलते थे।

श्री जगन्नाथ भगवान

प्रभु इनके साथ अनेक लीलाए किया करते थे। प्रभु इनको चोरी करना भी सिखाते थे भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे। एक बार माधव दास जी को अतिसार( उलटी – दस्त ) का रोग हो गया। वह इतने दुर्बल हो गए कि उठ-बैठ नहीं सकते थे, पर जब तक इनसे बना ये अपना कार्य स्वयं करते थे और सेवा किसी से लेते भी नही थे।

कोई कहे महाराजजी हम कर दे आपकी सेवा तो कहते नही मेरे तो एक जगन्नाथ ही है वही मेरी रक्षा करेंगे । ऐसी दशा में जब उनका रोग बढ़ गया वो उठने बेठने में भी असमर्थ हो गये ।

तब श्री जी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुचे और माधवदासजी को कहा की हम आपकी सेवा कर दे।

भक्तो के लिए अपने क्या क्या नही किया

क्यूंकि उनका इतना रोग बढ़ गया था की उन्हें पता भी नही चलता था की कब मल मूत्र त्याग देते थे। वस्त्र गंदे हो जाते थे। उन वस्त्रो को भगवान अपने हाथो से साफ करते थे, उनके पुरे शरीर को साफ करते थे, उनको स्वच्छ करते थे। कोई अपना भी इतनी सेवा नही कर सके, जितनी भगवान ने भक्त माधव दास जी की करी है। भक्त माधव दास जी पर प्रभु का स्नेह। जब माधवदासजी को होश आया,तब उन्होंने तुरंत पहचान लीया की यह तो मेरे प्रभु ही हैं।

एक दिन श्री माधवदासजी ने पूछ लिया प्रभु से “प्रभु आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना नही पड़ता”

ठाकुरजी कहते हा देखो माधव! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की। जो प्रारब्द्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है। अगर उसको काटोगे तो इस जन्म में नही पर उसको भोगने के लिए फिर तुम्हे अगला जन्म लेना पड़ेगा और मै नही चाहता की मेरे भक्त को ज़रा से प्रारब्द्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े, इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नही टाल सकता  भक्तो के सहायक बन उनको प्रारब्द्ध के दुखो से, कष्टों से सहज ही पार कर देते है प्रभु अब तुम्हारे प्रारब्द्ध में ये 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे।

15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदास जी से ले लिया

आज भी इसलिए जगन्नाथ भगवान होते है बीमार। वो तो हो गयी तब की बात पर भक्त वत्सलता देखो आज भी वर्ष में एक बार जगन्नाथ भगवान को स्नान कराया जाता है ( जिसे स्नान यात्रा कहते है ) स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ते है। 15 दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है कभी भी जगनाथ भगवान की रसोई बंद नही होती पर इन 15 दिन के लिए उनकी रसोई बंद कर दी जाती है। भगवान को 56 भोग नही खिलाया जाता, (बीमार हो तो परहेज़ तो रखना पड़ेगा)

प्रभु को लगाया जाता है काढ़ो का भोग:-

15 दिन  भगवान को काढ़ो का भोग लगता है। इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है। धाम मंदिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं। काढ़े के अलावा फलों का रस भी दिया जाता है। वहीं रोज शीतल लेप भी लगाया जाता है। बीमार के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है। भगवान  बीमार हो गए है और अब 15 दिनों तक आराम करेंगे। आराम के लिए 15 दिन तक मंदिरों पट भी बंद कर दिए जाते है और उनकी सेवा की जाती है। ताकि वे जल्दी ठीक हो जाएं। जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते है उस दिन यात्रा निकलती है, जिसके दर्शन हेतु असंख्य भक्त उमड़ते है। खुद पे तकलीफ ले कर अपने भक्तो का जीवन सुखमयी बनाये। ऐसे तो सिर्फ मेरे भगवान ही हो सकते है।

समापन

भगवान जगन्नाथ के मंदिर और उनके त्योहार भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण हिस्से हैं, जो आध्यात्मिकता, सामाजिक समरसता, और आत्मा के साथ एकता की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ प्रदान करते हैं। जगन्नाथपुरी का मंदिर और उसका त्योहार दर्शाते हैं कि धर्म के माध्यम से हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं और अपनी आत्मा को पुनर्निर्माण का मार्ग दिखा सकते हैं। इसलिए, जगन्नाथपुरी का मंदिर और रथयात्रा हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और हमें इनके महत्व को समझने और मान्यता देने की आवश्यकता है।