महाविद्या माँ तारा के बारे में संक्षिप्त जानकारी
माँ तारा दस महाविद्या की दूसरी देवी है, इसे “तारिणी” माता भी कहा गया है। तारा माता के शरण मे जो साधक आता है उसका जीवन सफल हो जाता है, तारा माँ “फीडर’ है, मतलब जिसका स्नेहपूर्ण दूध कभी भी कम नही होता, साधक को एक दूध पीते बच्चे की तरह माँ अपनी गोद मे रखती है, उसे वात्सल्य का स्तनपान हररोज कराती है।
तारा माँ भगवान शिव शंकर की भी माता है, तो तारा मा कि ताकत का अंदाजा लगाइये, जब देव और दानव समुदमंथन कर रहे थे तो विष निर्माण हुआ उस हलाहल से विश्व को बचाने के लिये शिव शंकर सामने आये उन्होने विष प्राषन किया, लेकिन गडबड यह हुई के उनके शरीर का दाह रुकने का नाम नही ले रहा थ, इसलिये मा दूर्गा ने तारा मा का रूप लिया और भगवान शिवजी ने शावक का रूप लिया,फिर तारा देवीउन्हे स्तन से लगाकार उन्हे स्तनोंका दूध पिलाने लगी, उस वात्सल्य पूर्ण स्तंनपान से शिवजी का दाह कम हुआ, लेकिन तारा मा के शरीर पर हलाहल का असर हुआ जिसके कारण वह नीले वर्ण की हो गयी।
जिस मा ने शिवजी को स्तनपान किया है, वो अगर हमारी भी वात्सल्यसिंधू बन जायेगी तो हमारा जीवन धन्य हो जायेगा, तारा माता भी मा काली जैसे सिर्फ कमर को हाथोंकी माला पहनती है, उसके गले मे भी खोपडियोंकी मुंड माला है, वाक सिद्धि, रचनात्मकता, काव्य गुण के लिए शिघ्र मदद करती है, साधक का रक्षण स्वयमं माँ करती है इसलिये वह आपके शत्रूओंको जड से खत्म कर देती है। इनके दो मंत्र है, एक मंत्र मे “त्रिं” और दूसरे मे “स्त्रीं” ऐसे उच्चारण है,शक्ति का यह तारा रूप शुद्दोक्त ऋषि द्वारा शापित है, इसिलिये उच्चारण का ध्यान रहे ।
मंत्र:-
“ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट”
तारा स्तुति:-
मातर्तीलसरस्वती प्रणमतां सौभाग्य-सम्पत्प्रदे प्रत्यालीढ –पदस्थिते शवह्यदि स्मेराननाम्भारुदे
फुल्लेन्दीवरलोचने त्रिनयने कर्त्रो कपालोत्पले खड्गञ्चादधती त्वमेव शरणं त्वामीश्वरीमाश्रये ॥
मध्य रात्रि में मृग चर्म पर स्फटिक या हकिक की माला (उग्र साधना मे मानव कंकाल से निर्मित माल) से मंत्र जाप एवं हवन करने पर माता परम ज्ञानी एवं सर्व समर्थ बनती हैं।
अक्षोभ्य पुरुष” की शक्ति है “माँ तारा”। जिसे माँ तारिणी कहा गया है। मध्यरात्रि के पश्चात का जो समय है वो माँ तारा का ही है । ये वही महाविद्या है जिन्हेँ तारिणी का नाम इसलिए प्रदान किया गया क्योँकि यही शक्ति हमेँ इस भवरुपी बन्धन से तारती है । मानवदेह मेँ जब ये जीवात्मा बन्धनयुक्त पडी रहती है तो उस समय जीवात्मा निरन्तर छटपटाती रहती है । कभी उसका ह्रदय “भोग” चाहता है तो कभी “योग”। लेकिन वह दोनोँ को पाने का प्रयत्न तो करता है लेकिन किसी एक को भी ठीक तरह से प्राप्त नहीँ कर पाता । तो माँ तारा की साधना एवं आराधना ऐसी विलक्षण है कि यदि साधक सब कुछ न्योछावर कर यदि तन्त्रमार्ग से इनकी साधना एवं आराधना करे तो वह “भोग” एवं “मोक्ष” दोनोँ को प्राप्त करता है । “तारा तन्त्र” यद्यपि वामाचारी क्रिया से सम्पन्न होता है क्योँकि यह चीनाचारा पद्धति के द्वारा चलनेवाला है लेकिन यदि साधक इस सम्पूर्ण रहस्य को अपने श्रीगुरु के चरणोँ मेँ बैठकर समझे तो इस महाविद्या की कृपा वह अवश्य प्राप्त करता है । तारा भगवती “ब्रह्म” का ज्ञान प्रदान करनेवाली महाशक्ति है।
यह वह शक्ति है जो हमेँ सम्पूर्ण मानसिक पीडाओँ से मुक्ति प्रदान करती है। भगवती के सम्बन्ध मेँ कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने के सदृश होगा। अतः साधक को चाहिए की वह दस महाविद्याओँ की साधना एवं आराधना लगातार करता रहे। माँ भगवती के स्तोत्र एवं मन्त्रोँ को वीरभाव से पढा अथवा उनका उच्चारण किया जाता है। ये मन्त्र जितने भयानक और जितने गम्भीर कण्ठ स्वर से पढे जाते है उतने ही अधिक फलदायी होते है। इन मन्त्रोँ की “सामर्थ्य” को एक “योग्य साधक” ही जान सकता है। लेकिन यदि साधारण मनुष्य भी यदि पद्मासन अथवा सुखासन मेँ बैठकर इन मन्त्रोँ को सुनेँ, इनका श्रवण करे तो वह अपने जीवन की सभी बाधाओँ से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। उसके अनेकोँ रोग नष्ट होते है। सम्पूर्ण भय नष्ट होता है। व्यक्ति का मानसिक विकास होता है अथवा आध्यात्मिक विकास प्राप्त करते हुए वह “भोग-मोक्ष” दोनोँ को प्राप्त करता है।
उग्र रूप से की जाने वाली शव साधना का असली प्रारूप माँ तारा की ही आराधना है, ये साधना गृहस्तों के लिए नहीं है, और हम तो यही कहना चाहेंगे कि गलत उद्देश से कभी भी वमाचारि साधनाएँ ना करें, हमने कई लोगों का जीवन नर्क होते देखा है।