महाविद्या माँ धूमावती का संक्षिप्त परिचय
धूमावती माता भी १० महाविद्याओं में से एक है। धूमावती देवी बहुत ही दयालु स्वभाव वाली देवी है। धूमावती देवी का स्वरुप बड़ा मलिन और भयंकर प्रतीत होता है। धूमावती देवी का स्वरूप विधवा का है तथा कौवा इनका वाहन है,वह श्वेत वस्त्र धारण किए हुए, खुले केश रुप में होती हैं। देवी का स्वरूप चाहे जितना उग्र क्यों न हो वह संतान के लिए कल्याणकारी ही होता है। मां के दर्शन से अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। पापियों को दण्डित करने के लिए इनका अवतरण हुआ।नष्ट व संहार करने की सभी क्षमताएं देवी में निहीत हैं।
देवी नक्षत्र ज्येष्ठा नक्षत्र है इस कारण इन्हें ज्येष्ठा भी कहा जाता है। ऋषि दुर्वासा, भृगु, परशुराम आदि की मूल शक्ति धूमावती हैं। सृष्टि कलह के देवी होने के कारण इनको कलहप्रिय भी कहा जाता है।चौमासा देवी का प्रमुख समय होता है जब देवी का पूजा पाठ किया जाता है।माँ का रूप अत्यंत भयंकर हैं इन्होंने ऐसा रूप शत्रुओं के संहार के लिए ही धारण किया है। यह विधवा हैं, इनका वर्ण विवर्ण है, यह मलिन वस्त्र धारण करती हैं। केश उन्मुक्त और रुक्ष हैं। इनके रथ के ध्वज पर काक का चिन्ह है। इन्होंने हाथ में शूर्पधारण कर रखा है, यह भय-कारक एवं कलह-प्रिय हैं ।
महाविद्या धूमावती का कोई स्वामी नहीं है अर्थात इसका रूप विधवा का है, महाविद्या दरिद्रता को नाश करने में साधक की सहायता करती है। माँ की साधना करने से साधक में व्यवहार में निडरता आती है इसलिए इस वजह से ये साधना बहुत महत्वपूर्ण है। महाविद्या अपनी शक्तियों की स्वयं स्वामी है ऋग्वेद में रात्रिसूक्त में इसे माँ सूत्र कहकर सम्भोधित किया गया है।
माता धूमावती मंत्र:- धूं धूं धूमावती मसान में रहती मरघट जगाती सूप छानती
जोगनियों के संग नाचती डाकनियों के संग माँस खाती
मेरे बैरी का भी तू माँस खाय कलेजा खाए लहू पीये
प्यास बुझाय मेरे बैरी को तड़पा तड़पा मार ना मारे तो दुहाई माता पार्वती की दुहाई महादेव की।।
पौराणिक ग्रंथों अनुसार इस प्रकार रही है:-
एक बार देवी पार्वती बहुत भूख लगने लगती है और वह भगवान शिव से कुछ भोजन की मांग करती हैं। उनकी बात सुन महादेव देवी पार्वती जी से कुछ समय इंतजार करने को कहते हैं ताकी वह भोजन का प्रबंध कर सकें।समय बीतने लगता है परंतु भोजन की व्यवस्था नहीं हो पाती और देवी पार्वती भूख से व्याकुल हो उठती हैं। क्षुधा से अत्यंत आतुर हो पार्वती जी भगवान शिव को ही निगल जाती हैं।
महादेव को निगलने पर देवी पार्वती के शरीर से धुआँ निकलने लगाता है। तब भगवान शिव माया द्वारा देवी पार्वती से कहते हैं कि देवी,धूम्र से व्याप्त शरीर के कारण तुम्हारा एक नाम धूमावती होगा। भगवान कहते हैं तुमने जब मुझे खाया तब विधवा हो गई अत: अब तुम इस वेश में ही पूजी जाओगी। दस महाविद्यायों में दारुण विद्या कह कर देवी को पूजा जाता है।