हनुमान जी के कुछ विशेष काम्य प्रयोग:-
जैसे कि सब जानते हैं कि तन्त्र शास्त्र में हनुमान जी के काफी सारे प्रयोग मिलते हैं अब उनमे से कुछ सरल और चुनिंदा प्रयोग आप सभी के सामने उजागर कर रहा हु । आशा है आप इनसे लाभान्वित हो।
- हनुमान चालीसा सिद्धि विधान:-
हनुमान चालीसा के 108 पाठ 41 दिन पर्यंत नित्य करें । अनुष्ठान घर के किसी स्वछ कमरे में या पीपल के वृक्ष के नीचे अथवा किसी मन्दिर में सम्पन्न करें (उग्र वामपंथी साधक इस साधना को निशार्द्ध में श्मशान में करते हैं लेकिन गृहस्थ व्यकितयों को सर्वथा दूर रहना चाहिए)। अनुष्ठान से पूर्व व समाप्ति के बाद में हनुमानजी जी को चोला अवश्य चढ़ाए । हनुमान चालीसा व श्री राम नाम से तुलसी, गूगल, घी, तिल, लोबान से दशांश हवन करें । किसी भूखे निर्धन व असहाय जरूरतमंद व्यक्ति का मदद करें और अपने सामर्थ्य अनुसार गौ माता और बन्दरों (अभाव में किसी भी पशु अथवा पक्षि) के लिए भोजन और जल का प्रबंध करें । इस दौरान प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में किसी न किसी माध्यम से हनुमानजी के दर्शन साधक को प्राप्त होते हैं ।
- हनुमान चालीसा का लोम-विलोम पाठ:-
पहले चौपाई से शुरू कर के 40 तक पढ़ें फिर 40 – 39 – 38 … 2…1(प्रथम चौपाई) तक पाठ करें । ऐसे में प्रथम चौपाई से से अंतिम चौपाई तक और अंतिम चौपाई से प्रथम चौपाई तक का पाठ एक ही पाठ में गिना जाता है । इस तरह के 5/7/11/21 पाठ नित्य करें जब तक आपका कार्य सिद्ध नही हो जाता । शत्रु बाधा , आपत्ति-विपत्ति निवारण , में यह प्रयोग विशेष कार्य करता है । विलोम पाठ संहार कम्र का प्रतीक है आपातकालीन स्थिति में ही यह प्रयोग को करना चाहिए ।
- हनुमान जी के तैलाभिषेक प्रयोग:-
हनुमान जी के सामने सुंदरकांड , हनुमान चालीसा , एवं राम रक्षा स्तोत्र , का पाठ करें एक ताम्रपत्र में बारीक छेदकर ऊपर से प्रतिमा पर लटका देवें, उसमें शत्रु नाश हेतु सरसों का तेल सर्व कामना सिद्धि हेतु तिल के तेल का प्रयोग करें धन यश सुख समृद्धि सौभाग्य वृद्धि हेतु चमेली का तेल डालकर अभिषेक करें तेल का संग्रह करके शाम को उससे दीपक जला दें अथवा रोगी को लगाये तो आरोग्य लाभ हो होता है । अनुष्ठान समापन पर हनुमानजी को चोला चढ़ाना चाहिए, श्रृंगार कर भोग लगाना चाहिए । यह प्रयोग किसी मंदिर अथवा हनुमान जी के विग्रह रूपी प्रतिमा पर ही सम्पन्न हो सकती है।
- संकट निवारण हेतु विशेष:-
हनुमान जी संकट मोचन के नाम से भी प्रशिद्ध है इसलिए तुलसी के पत्तों पर केसर चंदन या अष्ठगंध से राम नाम लिखें और उनकी माला बनाकर हनुमान जी को पहनाए अथवा लौंग की माला लाल धागे से तैयार कर के पहिनाने से भी क्रूर ग्रहों की दशा शांत होती है । यह क्रिया आप अपने घर पर भी सम्पन्न कर सकते हैं और मन्दिर में भी सम्पन्न कर सकते हैं । हनुमान जी को निम्बू की माला बनाकर पहनाने से घोर कष्टों से मुक्ति मिलती है भक्त को।
गूगल व जायफल के धूनी देने से भी संकट निवारण होता है।
- कठिन कार्यों को सिद्ध करने हेतु विशेष:-
कठिन कार्यों को करने से पर्व हनुमानजी को पाँव के नख से शिर तक सिन्दूर मिश्रित चमेली के तेल का चोला चढ़ाना चाहिए और फिर कार्य सम्पर्ण होने के बाद में शिर से पाव तक चोला चढ़ाना है । अंत मे श्रृंगार कर हवन आदि कर्म सम्पन्न करें ।
आप लोगों को याद होगा कि हनुमान जी को उनकी वाल्यावस्था में एक श्राप मिला था कि वे अपनी समस्त शक्तियों को विस्मृत करेंगे और जब कभी भविष्य में कोई उनको उनकी शक्ति बल औऱ तेज का स्मरण दिलाएगा तब वे अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर पाएंगे । इस क्रिया के माध्यम से हनुमान जी को अपना बल याद हो आता हैं क्योंकि सिंदूर उनके लिए रामजी के प्रति अपने निष्ठा और कर्तव्य का प्रतीक है ।
इसके क्रिया के विषय मे और क्या विस्तार से क्या कहुं कोई भी हनुमान जी कि साधना इसके बिना अधूरी है ।
- राज्य कार्य मे विजय हेतु अथवा आरहे बाधाओं का शमन हेतु:-
किसी भी हनुमान जी के मंदिर में उन्हें ध्वज/पताका चढ़ाये और पुरानी पताका को लेकर अपने दुकान या मकान के ऊपर लगा सकते हैं । इससे पूर्ण सुरक्षा प्राप्त होता है । शत्रुओं पर विजय भी सुनिश्चित होता है।
- शत्रु विजय कि अभिलाषा व तन्त्र बाधा निवारण हेतु:-
हनुमानजी के सामने विभीषण कृत हनुमद् वडवानल स्तोत्र , या शत्रुंजय हनुमद् स्तोत्र , लांगुलास्त्र का 11 / 21 / 31 / 51 पाठ 41 दिनों तक करना चाहिए । ध्यान रखें किसी का क्रोध व स्वार्थ बस हानि कदापी न करें।
- हनुमद् सहस्रनाम प्रदक्षिणा विधि:-
हनुमान सहस्रनाम को पढ़ते हुए 1008 बार हनुमानजी का परिक्रमा करने से संकट दूर होते हैं व अभीष्ट मनोरथ कि पूर्ति होती है । अगर सहस्रनाम नही पढ़ सकते हैं तो हनुमान जी के 108 नाम का पाठ सम्पन्न कर 108 प्रदक्षिणा सम्पन्न करना चाहिए । यह प्रयोग को 7 या 11 शिनवार अथवा मंगवार को करने से लाभ प्राप्त होता है । यह प्रयोग को सम्पन्न करने से शरीर मे बल बुद्धि वीर्य और पुरुषार्थ का विकास होता है और व्यक्ति अपने अंदर एक दिव्य ऊर्जा प्रभाह को मेहसूस करता है।
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।
लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ।।
दीनानुबन्धि मेधावी प्रेमब्धि रामबल्लभ
यद्देवं मारुते वीरम् अभीष्टं देहि सत्त्वरम् ।।